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सृष्टिकाल से ही है सूर्यषष्ठी व्रत की परंपरा, शुक्रवार से चार दिवसीय अनुष्ठान होगा प्रारंभ, छठी मईया की मधुर गीतों से गूंज रहा समूचा इलाका


सूर्योपासना और लोक आस्था का महान पर्व सूर्यषष्ठी व्रत का चार दिवसीय अनुष्ठान 17 नवम्बर 2023 शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ प्रारंभ हो जाएगा. छठ व्रती 18 नवम्बर शनिवार को खरना एवं 19 नवम्बर रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगे. वहीं, 20 नवम्बर सोमवार को उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही चार दिवसीय अनुष्ठान का विधिवत समापन हो जाएगा. 

शास्त्रों में द्वादश आदित्यों की कल्पना भगवान सूर्य की द्वादश शक्तियों के रूप में की गयी है. भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता माने जाते हैं. इनकी पूजा की परंपरा बहुत पहले से भारत में ही नही बल्कि विश्व में व्याप्त है. सूर्य के प्रकाश से ही चन्द्र भी प्रकाशित होते हैं एवं तारे भी चमकते हैं जो अनेक ग्रहों, नक्षत्रों के रूप में माने जाते हैं. भगवान सूर्य के कारण ही दिन तथा रात का वर्गीकरण सम्भव हो पाता है.

आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सौर ऊर्जा महत्वपूर्ण मानी जाती है. सूर्य की पूजा करने का विधान तो संध्योपासना में भी है जिससे मानसिक एवं शारीरिक ऊर्जाएं प्राप्त होती हैं. इसके अतिरिक्त हमारी भारतीय संस्कृति भगवान सूर्य को परब्रह्म के रूप में मानती है. सूर्य की उत्पत्ति परमात्मा की आँखों से मानी गयी है. वे जड़ चेतन समस्त सृष्टि की आत्मा हैं.

सूर्योपासना से आयु, विद्या, बुद्धि, बल, तेज एवं मुक्ति की प्राप्ति होती है. आयुर्वेद शास्त्र में भी आरोग्य की प्राप्ति के लिए सूर्योपासना का निर्देश दिया गया है - आरोग्यं भास्करादिच्छेत् अर्थात् आरोग्य के लिए सूर्य की पूजा करें.

जहां तक छठ माता का सम्बंध है, जिनकी पूजा सूर्यषष्ठी व्रत के रूप में की जाती है, यह शक्ति रूपा मानी जाती है. इनकी पूजा पौराणिक काल से चली आ रही है. इसकी झलक लौकिक छठव्रत की कथाओं, मान्यताओं एवं महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले गीतों में मिलता है और यह प्रत्यक्ष भी है.

सत्व, रज, तम ये तीनों ही गुण छठी माता के नियंत्रण में काम करते हैं जो सृष्टि के संचालक एवं संबर्द्धक हैं. सूर्यषष्ठी व्रत का विधान सृष्टिकाल से ही चला आ रहा है. यह व्रत सतयुग में नागकन्या के उपदेश से शर्याति नामक राजा की पुत्री तथा च्यवन ऋषि की पत्नी सुकन्या ने किया था. भगवान राम ने सूर्योपासना करके ही रावण पर विजय प्राप्त की थी. महारथी कर्ण ने सूर्योपासना से ही कवच कुण्डल प्राप्त किए थे. धर्मराज युधिष्ठिर ने सूर्योपासना से ही राज्यलक्ष्मी पुनः प्राप्त की थी. 

व्रती माताओं में छठी माता शक्तिरूप में विद्यमान होकर जगत् का कल्याण करती है, यह प्रत्यक्ष देखा जाता है. सामाजिक शक्ति के रूप में छठी माता घाटों पर श्री सविता  के रूप में बनायी जाती है और अस्ताचल होते हुए सूर्य से उनका सम्बंध बिठाया जाता है जो एक शक्ति का प्रत्यक्ष रूप ही है.

छठपूजा में ईंख, अदरख, मूली, हल्दी, सुथनी,अरवी, नीम्बू, बोड़ी, नारियल, सिंघाड़ा, केला, साठी चावल, गुड़, पान, लौंग, इलायची, सुपारी आदि औषधियों एवं विभिन्न प्रकार के ऋतुफलों का उपयोग भी अर्घ्य के रूप में किया जाता है. अतः इस व्रत का औषधियों के संबर्द्धन तथा संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान है.

बिहार प्रदेश पूर्व दिशा में स्थित है और सूर्योदय भी पूर्व दिशा में ही होता है. शक्ति स्वरूपा माता सीता का सम्बंध भी यही से है. अतः सूर्य की उपासना बिहार के कोने कोने में होना स्वाभाविक है. सूर्यषष्ठी व्रत श्रद्धा एवम विश्वास के साथ करने से मनुष्य के ज्ञाताज्ञात समस्त पापों का नाश होता है तथा मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि विश्व भर में फैले सनातन धर्मावलंबियों के बीच सूर्य षष्ठी व्रत का काफी महत्व है. समूचा इलाका छठी मईया की मधुर गीतों से गूंज रहा है.

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